“समय बहाकर ले जाता है नाम और निशान कोई हम में रह जाता है कोई अहम में रह जाता है बोल मीठे ना हों तो हिचकियाँ भी नहीं आती घर बड़ा हो या छोटा अगर मिठास ना हो तो इंसान क्या चींटियां भी नहीं आती”
"सोने में जब जड़ कर हीरा, आभूषण बन जाता है, वह आभूषण फिर सोने का नही, हीरे का कहलाता है। काया इंसान ही सोना है और, कर्म हीरा कहलाता है, कर्मो के निखार से ही, मूल्य सोने का बढ़ जाता है।
किसी की "सलाह" से रास्ते जरूर मिलते हैं, पर मंजिल तो खुद की "मेहनत" से ही मिलती है ! "प्रशंसक" हमें बेशक पहचानते होंगे.. मगर "शुभचिन्तकों" की पहचान खुद को करनी पड़ती है